HASYA-VYANG

HANSO HANSAO

KHOON BADHAO

मंगलवार, 25 मई 2010

ऐ मेरे लाल तुझे चोट तो नहीं आई ?


सुनो सुनाता हूँ मैं अपनी जुबानी
माँ कि ममता की सच्ची कहानी
किसी शहर मैं एक माँ और बेटे रहते थे !
माँ  के उस बेटे को प्यार से राजा-राजा कहते थे !
राजा बेटा अपनी माँ  की दोनों आँख का तारा था !
सारे शहर मैं सबसे सुन्दर माँ का राज दुलारा था !
माता  राजा  के  हर गम  को अमृत समझ कर पीती थी !
अपनी सारी खुशियाँ छोड़ बस राजा के लिए ही जीती थी !
समय का पहिया द्रुत गति से अपनी दिशा मैं बढ़ने लगा !
माँ के बेटे राजा पर भी धीरे-धीरे जवानी का रंग चढ़ने लगा !
राजा के जीवन मैं आते - आते १८ वाँ बसंत बहार लाया !
कितना बांका जवां हुआ वो अंग - अंग पर निखार आया !
एक दुश्चरित्र तवायफ की नज़र मैं राजा की जवानी चढ़ गई !
नादान राजा कुछ समझ न पाया कब उसकी आँखें लड़ गई !
तवायफ ने राजा और उसकी दौलत को  अपनी नज़र मैं धर लिया !
दिखाके के अपने हुस्न के जलवे राजा को अपने बस मैं कर लिया !
राजा को उस तवायफ के आगे कुछ नज़र नहीं आता था !
माँ के हाथ से खाना - पीना अब उसको नहीं भाता था !
माँ की ममता तड़प  उठी, मेरे लाल  को किसकी नज़र लग गई !
किसी तरह से एक दिन माँ को उस डायन के बुरे इरादों की भनक लग गई !
माँ ने लाल को बहुत मनाया, ये औरत तेरे काम न आएगी !
बेटा ये तेरी दौलत और तुझको बस नोच - नोच कर खाएगी !
पर बेटे को होश कहाँ था, उस पर हुस्न का जादू सवार था !
उस बैरन तवायफ के लिए वो कुछ भी करने को तैयार था !
आँखों पर  थी बदली छाई, माँ की शिक्षा समझ न आई !
अपने लाल को फंसते देखकर माँ की ममता रह न पाई !
एक दिन माँ  कोठे पर आई जहाँ पर थी वेह बैरन बाई !
मेरे लाल को छोड़ दे  डायन, माँ ने बड़ी फटकार लगाईं !
सबके आगे लज्जित हुई वेह ये अपमान वेह से न पाई !
मन ही मन मैं उस त्रिया ने माँ को हटाने की विधि लगाईं !
रात को जब राजा कोठे पर आया माँ की सारी बात बताई !
राजा की कुछ समझ न आया जब उस त्रिया ने चाल दिखाई !
उस त्रिया ने उस लाल से उसकी माँ की कटी गर्दन मंगवाई !
राजा   बोला  मैं ये   कैसे कर  सकता हूँ वो तो है मेरी जननी माई !
त्रिया बोली मैं अपनी जान दे दूँगी अगर मेरे पास वो गर्दन न आई !
त्रिया  ने भर   बाँहों  मैं राजा को उससे इस महापाप की हाँ भरवाई !
निकला लाल कोठे से घर को घर पहुँच कर माँ को आवाज़ लगाई !
सुनकर के आवाज़ अपने लाल की झट से माँ दरवाज़े पर आई !
देख लाल को चकित हुई माँ उस पर थी ख़ामोशी छाई !
लाल था उसका किस उलझन मैं भोली माँ कुछ समझ न पाई !
बिठा लाल को अपनी गोद मैं, पूछा तेरे मन मैं ऐसी  क्या मुश्किल है समाई !
स्नेह माता का देखा तो बह निकली जलधारा पर मुंह से कुछ आवाज़ न आई !
लाल के  मन मैं  छिड़ा  द्वन्द था प्यार को  पाऊँ तो खो दूंगा मैं अपनी माई !
माँ  बोली होगा लाल  मेरा भूखा तेरे लिए अभी मैं खाना लेकर आई !
बोला लाल माँ तू ही खिला दे, तेरे हाथों से मैंने कबसे रोटी न खाई !
चली गई माँ खाना लेने बेटे के प्यार मैं भाव - बिभोर होने लगी !
यहाँ लाल पर बेटे की जगह आशिक की दुष्टात्मा सवार होने लगी !
ठान  लिया मन मैं अपनी महबूबा को सदा के लिए अपनी कर लूँगा !
मौका पाते ही शीश माँ का एक बार मैं उसके धड से अलग कर दूंगा !
आई माँ खाना लेकर लाल को अपने हाथों से निवाला खिलाने लगी !
देख  प्यार  माँ  का यों बेटे की आत्मा उसका दिल धड्काने लगी !
मगर माँ के सच्चे प्यार पर महबूबा का झूठा प्यार सवार हुआ !
निकली बेटे की आत्मा लाल पर दुष्टात्मा का जूनून सवार हुआ !
बोला माँ मैं तुम्हे अंतिम बार एक कष्ट और दूंगा !
मुझे थोड़ी खीर दो मैं थोड़ी खीर और लूँगा !
ज्यों ही माँ ने खीर देने के लिए गर्दन झुकाई !
वैसे ही लाल की छुपी कटार ने अपनी धार दिखाई !
उस कलयुग के बेटे ने पल मैं ये जुलम कर दिया !
अपनी माता के शीश  को धड से कलम कर दिया !
माँ की कटी गर्दन लाल के आगे छटपटाने लगी !
जुनूनी बेटे की आँखों के आगे भी अंधियारी छाने लगी !
कुछ देर बाद बदहवास से उस लाल को होश आया !
लहू से लथपथ माँ का शीश अपने दोनों हाथों मैं उठाया !
भूल गया जुनूं मैं माँ को बस महबूबा का चेहरा याद आया !
उसके अन्दर का शैतान अभी भी पूरी तरह से जाग रहा था !
लेकर कटा शीश माँ का महबूबा के घर को सरपट भाग रहा था !
भागते - भागते अँधेरे मैं लाल ने एक पत्थर से ठोकर खाई !
गिरा हाथ से शीश छूटकर पर कटे शीश से भी माँ की आवाज़ ये आई !
ऐ मेरे लाल तुझे चोट तो नहीं आई ? ऐ मेरे लाल तुझे चोट तो नहीं आई ?
आवाज़ सुन माँ की धरती पर गिरा लाल  फिर हडबडाया !
मगर सम्भाल खुद को उठा शीश फिर कदम बढाया !
गिरता-पड़ता शीश लिए वेह कोठे के दर से टकराया !
निकली बाहर त्रिया उसे देख यों आँखों पर विश्वास न आया !
उसका प्रेमी उसकी खातिर अपनी जननी का शीश था लाया !
 देख सामने उसको अपनी आँखों को उसकी आँखों मैं गढ़ा दिया !
बड़ी शान से शीश माता का प्रेमिका के चरणों मैं चढ़ा दिया !
सोचा देख कटा शीश माँ का प्रेमिका बहुत खुश हो जाएगी !
प्यार से उसे गले लगाकर सदा के लिए उसकी हो जाएगी !
मगर प्रेमिका ने उसके अन्दर मरे बेटे की आत्मा को जगा दिया !
और दरवाज़ा बंद कर उस दुष्ट लाल को यह कहते हुए भगा दिया !
" अरे मैं तेरे साथ रहकर बो नहीं भोग सकती जो तेरी माँ ने भोगा !
अरे जो अपनी जन्म देने वाली माँ का न हुआ वो मेरा क्या होगा !"
लिए   शीश  अपनी  माँ का बेटा बापस अपने घर आया !
जिसके लिए कुर्बान किया माँ को उससे क्या धोखा खाया !
झूठा प्यार मिला धूल मैं माँ का सच्चा प्यार उसे  याद आया !
झर - झर आँखों से बहे आंसू अपने किये पर बड़ी लाज आई !
जिस कटार से काटा शीश माँ का बही कटार गर्दन पर चलाई !
चलते ही काम किया कटार ने लहू की धारा गर्दन से आई !
बहता देख लहू बेटे का घर के हर कोने से बस ये ही आवाज़ थी आई !
ऐ मेरे लाल तुझे चोट तो नहीं आई ? ऐ मेरे लाल तुझे चोट तो नहीं आई ?

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